शतरंज- उपन्यास
*भाग-2*
*पैरों तले ज़मीन खिसकना*
मुँह दिखाई की रस्म खत्म होती है और सभी मेहमान जा चुके होते हैं। अभय(अंगड़ाई लेता हुआ कुर्सी पर से उठते हुए) कहता है, -"चल भाई अब मैं भी आराम करने चला.. ये सब शादी के पचड़े में बहुत थक गया।"
"हाँ बेटा जा!" -सरिता पुचकारती हुई अपने बेटे से कहती है।
"अरे स्नेहा! बेटा रसोई में कुछ बर्तन पड़े हैं। तू धो लेगी..." -सरिता, स्नेहा को रसोई की तरफ इशारा करती हुई कहती है।
स्नेहा आँखे फाड़े अपने पति और सास को देख रही थी।
"अभय..मम्मी जी.. ये सब चल क्या रहा है.. कोई कुछ मुझे बताएगा.. स्नेहा चिल्लाती हुई अभय और सरिता से सवाल करती है।
"ए लड़की.. ये तेरा महल नही है.. जो तू हम सब पर धौस जमाएगी। समझी.. ये हमारा घर है। यहाँ तुझे हमारे हिसाब से चलना होगा। गाँठ बाँध ले ये बात.." -सरिता स्नेहा को डाँटती हुई कहती है।
स्नेहा, -"मम्मी जी! आप ये मुझसे किस तरह से बात कर रही हैं।"
"अरे! जाने दे ना माँ.. बेचारी को तो कुछ पता भी नही है।" -अभय अपनी माँ को टोकता हुआ कहता है।
स्नेहा, -"क्या नही पता है अभय... ये क्या मज़ाक चल रहा है.. मुझे बताओगे..
"अरे स्नेहा देख.. मैं तुझे साफ-साफ बताता हूँ। मुझे तुझमें कोई इंटरेस्ट नही है।" - अभय, स्नेहा से बोलता है।
स्नेहा भौचक्की हो कर पूछती है, -"इंटरेस्ट नही है.. व्हाट डू यूँ मीन बाई इंटरेस्ट नही है.. हा...?"
"अरे बाबा! बहुत मच मच कर रही है तू.. मेरा दिमाग फिर गया ना..तो.. -"अभय, चिड़चिड़ा कर स्नेहा से बोलता है।
स्नेहा (गुस्से में) चिल्लाती हुई-"ये तुम किस लहज़े में मुझसे बात कर रहे हो अभय... दो कौड़ी के गुंडे की तरह.."
अभय गुस्से से बेकाबू को जाता है और स्नेहा को मारने के लिए हाथ उठा देता है, -"स्नेहा......
तभी सरिता, अभय का हाथ पकड़ती है और उसके पीठ को सहलाती हुई उसे समझा कर बोलती है, -" अरे बेटा शांत हो जा।"
"मैं इसे गुंडा दिखता हूँ माँ.. हाँ, मैं हूँ गुंडा। क्या करेगी तू.. कुछ नही कर सकती तू.. समझी ना! तेरी शादी हो चुकी है मुझसे। अब तू कुछ नही कर सकती। तुझे मेरे ही साथ ज़िन्दगी भर रहना होगा। समझी ना तू.." -अभय चिल्लाता हुआ स्नेहा से कहता है।
स्नेहा आँखे फांड़े सरिता और अभय को देख रही थी। उसके पैरों तले मानो ज़मीन खिसक गई हो। उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था कि उसके साथ हो क्या हो क्या रहा है, -" क्या कहा तुमने गुंडे हो..."
"हाँ.. गुंडा हूँ। क्या कर लेगी बोल.. "-अभय ( आँखे बड़ी कर चिल्लाता हुआ) स्नेहा से बोलता है।
"अरे बेटा हाँ.. हाँ..शांत हो जा! शांत हो जा! चल..चल.. कमरे में चल।" -सरिता, अभय को समझाती हुई कमरे में जाने को कहती है।
अभय को कमरे की ओर ले जाती हुई सरिता उससे फुसफुसाती है, -"तेरा गुस्सा सारी कहानी चौपट कर देगा। शाँत हो जा..
सरिता और अभय कमरे की ओर चले जाते है।
स्नेहा रोती हुई बेशुद्ध हो कर जमीन पर बैठ जाती है।
अभय क्या बोल रहा है उससे वह बिल्कुल भी बेखबर थी।
अभय और स्नेहा की शादी आज ही हुई थी। उसे कुछ भी समझ न आ रहा था कि अभय इतना पढ़ा लिखा और एक कंपनी का ओनर हो कर इस तरह से बातें क्यों कर रहा है।
और उसे इस चॉल में ले कर क्यों आया है।
आखिर ऐसी कौन सी बात है जो स्नेहा को नही पता है। और अभय, स्नेहा को चॉल में ले कर क्यों आया था.. जानने के लिए जुड़े रहिए कहानी के अगले भाग के साथ।
©स्वाति चरण पहाड़ी
shweta soni
20-Sep-2022 12:31 AM
Very nice
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Pallavi
19-Sep-2022 09:10 PM
Nice post
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Priyanka Rani
19-Sep-2022 08:38 PM
Amazing
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